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Sutra: धन्वन्तरिमभिवाद्य सुश्रुतउवाच- प्रागभिहितः ’प्राणिनां पुनर्मूलमाहारो बलवर्णौजसां च, स षट्सु रसेष्वायत्तः, रसाः पुनर्द्रव्याश्रयिणः’ द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकनिमित्ते च क्षयवृद्धी दोषाणां साम्यं च, ब्रह्मादेरपि च लोकस्याहारः स्थित्युत्पत्तिविनाशहेतुराहारदेवाभिवृद्धिर्बलमारोग्यं वर्णेन्द्रियप्रसादश्च, तथा ह्याहारवैषम्यादवस्थ्यम्; तस्याशितपीतलीढखादितस्य नानाद्रव्यात्मकस्यानेकविधविकल्पस्यानेकविधविकल्पस्यानेकविधप्रभावस्य पृथक् पृथक् द्रव्यरसगुणवीर्यविपाककर्माणीच्छामि ज्ञातुं, न ह्यनवबुद्धस्वभावा भिषजः स
Reference:1.1.46.3.0(पूर्व>सूत्र>अन्नपानविधिम्>सूत्र#3.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:अन्नपानविधिम्
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