Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'उरस्याष्टौ;'
Sutra: सङ्ख्यातस्तु दशोत्तरे द्वे शते; तेषां शाखास्वष्टषष्टिः, एकोनषष्टिः कोष्ठे, ग्रीवां प्रत्यूर्ध्वं त्र्यशीतिः। एकैकस्यां पादाङ्गुल्यां त्र्यस्त्रयः, द्वावङ्गुष्ठे, ते चतुर्दश; जानुगुल्फवङ्क्षणेष्वेकैकः, एवं सप्तदशैकस्मिन् सक्थ्नि भवन्ति; एतेनेतरसक्थि बाहू च व्याख्यातौ; त्रयः कटीकपालेषु, चतुर्विंशतिः पृष्ठवंशे, तावन्त एव पार्श्वयोः,उरस्याष्टौ; तावन्त एव ग्रीवायां, त्रयः कण्ठे, नाडीषु हृदयक्लोमनिबद्धास्वष्टादश, दन्तपरिमाणा दन्तमूलेषु, एकः काकलके नासायां च, द्वौ वर्त्ममण्डलजौ नेत्राश्रयौ, गण्डकर्णशङ
Reference:1.1.5.26.0(पूर्व>सूत्र>अग्रोपहरणीयम्>सूत्र#26.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:अग्रोपहरणीयम्
Search other sources: search this word on other online resources