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Index Search for        'उपरिष्टाद्'
Sutra: तत्र पाददाहपादहर्षचिप्पविसर्पवातशोणिततवातकण्टकविचर्चिकापाददारीप्रभृतिषु क्षिप्रमर्मणउपरिष्टाद् द्वयङ्गुले व्रीहिमुखेन सिरां विध्येत, श्लीपदे तच्चिकित्सिते यथा वक्ष्यते, क्रोष्टुकशिरः खञ्जपङ्गुलवातवेदनासु जङ्घायां गुल्फस्योपरि चतुरङ्गुले, अपच्यामिन्द्रबस्तेरधस्ताद्द्व्यङ्गुले, जानुसन्धे रूपर्यधो वा चतुरङ्गुले गृध्रस्यां, ऊरुमूलसंश्रितां गलगण्डे, एतेनेतरसक्थि बाहू च व्याख्यातौ; विशेषतस्तु वामबाहौ कूर्परसन्धेरभ्यन्तरतो बाहुमध्ये प्लीह्नि कनिष्ठिकानामिकयोर्मध्ये वा, एवं दक्षिणबाहौ यकृद्दाल्ये (क
Reference:1.1.8.17.0(पूर्व>सूत्र>शस्त्रावचारणीयम्>सूत्र#17.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:शस्त्रावचारणीयम्
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