Index Search for 'उत्सन्नःसलिलनिभोऽथ' |
Sutra: | उत्सन्नःसलिलनिभोऽथ पिष्टशुक्लो बिन्दुर्यो भवति स पिष्टकः सुवृत्तः। जालाभः कठिनसिरो महान् सरक्तः सन्तानः स्मृतः इह जालसंज्ञितस्तु॥ |
Reference: | 1.1.4.8.0(पूर्व>सूत्र>प्रभाषणीयम्>सूत्र#8.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | प्रभाषणीयम् |
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