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Tantra
 


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Index Search for        'उत्पन्ने'
Sutra: तत्र पुनर्वातलाहारसेविनोऽतिव्यवायाध्ययनभयशोकध्यानरात्रिजागरणपिपासाक्षुत्कषायाल्पाशनप्रभृतिभिरुपशोषितोरसधातुः शरीरमननुक्रामन्नल्पत्वान्न प्रीणाति तस्मादतिकार्श्यं भवति; सोऽतिकृशः क्षुत्पिपासाशीतोष्णवातवर्षभारादानेष्वसहिष्णुर्वातरोगप्रायोऽल्पप्राणश्च क्रियासु भवति, श्वासकासशोषप्लीहोदराग्निसादगुल्मरक्तपित्तानामन्यतममासाद्य मरणमुपयाति, सर्व एव चास्य रोगा बलवन्तो भवन्त्यल्पप्राणत्वात्; अतस्तस्योत्पत्तिहेतुं परिहरेत्।उत्पन्ने तु पयस्याश्वगन्धा विदारिगन्धाशतावरीबलातिबलानागबलानां मधुराणामन्यासां चौषधी
Reference:1.1.15.38.0(पूर्व>सूत्र>दोषधातुमलक्षयवृद्धिविज्ञानीयम्>सूत्र#38.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:दोषधातुमलक्षयवृद्धिविज्ञानीयम्
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