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Index Search for        'आपश्चाप्रशान्ताः'
Sutra: तत्र वर्षास्वोषधयस्तरुण्योऽल्पवीर्याआपश्चाप्रशान्ताः क्षितिमल प्रायाः, ता उपयुज्यमाना नभसि मेघावतते जलप्रक्लिन्नायां भूमौ क्लिन्नदेहानां प्रणिनां शीतवातविष्टम्भिताग्नीनां विदह्यन्ते, विदाहात् पित्तसञ्चयमापादयन्ति; स सञ्चयः शरदि प्रविरलमेघे वियत्युपशुष्यति पङ्केऽककिरणप्रविलायितः पैत्तिकान् व्याधीञ्जनयति। ता एवौषधयः कालपरिमाणात् परिणतवीर्या बलवत्यो हेमन्ते पवनोपस्तम्भितदेहानां देहिनामविदग्धाः स्नेहाच्छैत्याद्गौरवादुपलेपाच्च श्लेष्मसञ्चयमापादयन्ति; स सञ्चयो वसन्तेऽर्करश्मिप्रविलायित ईषत्स्तब्धदेहा
Reference:1.1.6.11.0(पूर्व>सूत्र>ऋतुचर्यम्>सूत्र#11.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:ऋतुचर्यम्
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