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Index Search for        'अस्निग्धस्विन्नस्य'
Sutra: स्नेहस्वेदाभ्यामविभावितशरीरेणाल्पमौषधमल्पगुणं वा पीतमूर्ध्वमधो वा नाभ्येति दोषांश्चोत्क्लेश्य तैः सह बलक्षयमापादयति। तत्राध्मानं हृदयग्रहस्तृष्णा मूर्च्छा दाहश्च भवति तमयोगमित्याचक्षते तमाशुवामयेन्मदनफललवणाम्बुभिर्विरेचयेत्तीक्ष्णतरैः कषायैश्च दुर्वान्तस्य तु समुत्क्लिष्टा दोषा व्याप्य शरीरं कण्डूश्वयथुकुष्ठपिडकाज्वराङ्गमर्दनिस्तोदनानि कुर्वन्ति। ततस्तानशेषान्महौषधेनापहरेत्अस्निग्धस्विन्नस्य दुर्विरिक्तस्याधोनाभेः स्तब्धपूर्णोदरता शूलं वातपुरीषसङ्गः कण्डूमण्डलप्रादुर्भावो वा भवति। तमास्थाप्य पु
Reference:1.1.34.10.0(पूर्व>सूत्र>युक्तसेनीयम्>सूत्र#10.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:युक्तसेनीयम्
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