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Sutra: | अस्थिशल्यमन्यद्वा तिर्यक्कण्ठासक्तमवेक्ष्य केशोण्डुकं दृढैकदीर्घसूत्रबद्धं द्रवभक्तोपहितं पाययेदाकण्ठात् पूर्णकोष्ठं च वामयेत्, वमतश्चशल्यैकदेशसक्तं ज्ञात्वा सूत्रं सहसा त्वाक्षिपेत्; मृदुना वा दन्तधावनकूर्चकेनापहरेत् प्रणुदेद्वाऽन्त। क्षतकण्ठाय च मधु सर्पिषी लेढुं प्रयच्छेत्त्रिफलाचूर्णं वा मधुशर्कराविमिश्रम्। |
Reference: | 1.1.27.20.0(पूर्व>सूत्र>शल्यापनयनीयम्>सूत्र#20.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | शल्यापनयनीयम् |
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