Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'अष्टावष्टावेकैकस्मिन्'
Sutra: तत्र सिराशतमेकस्मिन् सक्थ्नि भवति; तासां जालधरा त्वेका, तिस्रश्चाभ्यन्तराः- तत्रोर्वीसंज्ञे द्वे, लोहिताक्षसंज्ञा चैका, एतास्त्वव्यध्याः, एतेनेतरसक्थि बाहू च व्याख्यातौ; एवमशस्त्रकृत्याः षोडश शाखासु। द्वात्रिंशच्छ्रोण्यां, तासामष्टावशस्त्रकृत्याः- द्वे द्वे विटपयोः, कटीकतरुणयोश्च;अष्टावष्टावेकैकस्मिन् पार्श्वे, तासामेकैकामूर्ध्वगां परिहरेत्, पार्श्वसन्धिगते च द्वे; चतस्रो विंशतिश्च पृष्ठे पृष्ठवंशमुभयतः, तासामूर्ध्वगामिन्यौ द्वे द्वे परिहरेद्बृहतीसिरे; तावत्य एवोदरे, तासां मेढोपरि रोमराजीमुभयत
Reference:1.1.7.22.0(पूर्व>सूत्र>यन्त्रविधिम्>सूत्र#22.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:यन्त्रविधिम्
Search other sources: search this word on other online resources