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Index Search for        'अवघट्टयन्'
Sutra: वमनविरेचनशिरोविरेचनद्रव्याणां पालिका भागाः पिप्पल्यादिवचादिहरिद्रादिपरिपठितानां च द्रव्याणां श्लक्ष्णपिष्टानां यथोक्तानां च लवणानां, तत्सर्वं मूत्रगणे प्रक्षिप्य महावृक्षक्षीरप्रस्थं च मृद्वग्निनाअवघट्टयन् विपचेदप्रदग्धकल्कं, तत्साधुसिद्धमवतार्य शीतीभूतमक्षमात्रा गुटिका वर्तयेत्, तासामेकां द्वे तिस्रो वा गुटिका बलापेक्षया मासांस्त्रीश्चतुरो वा सेवेत, एषाऽऽनाहवर्तिक्रिया विशेषेण महाव्याधिषूपयुज्यते कोष्ठजांश्च कृमीनपहन्ति कासश्वासकृमिकुष्ठप्रतिश्यायारोचकाविपाकोदावर्ताश्च नाशयति॥
Reference:1.1.14.11.0(पूर्व>सूत्र>शोणितवर्णनीयम्>सूत्र#11.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:शोणितवर्णनीयम्
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