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Index Search for        'अर्पयन्ति'
Sutra: अधोगमास्तु वातमूत्रपुरीषशुक्रार्तवादीन्यधो वहन्ति । तास्तु पित्ताशयमभिप्रपन्नास्त्तत्रस्थमेवान्नपानरसं विपक्वमौष्ण्याद्विवेचयन्त्योऽभिवहन्त्यः शरीरं तर्पयन्ति ,अर्पयन्ति चोर्ध्वगानां तिर्यग्गानां च रसस्थानं चाभिपूरयन्ति , मूत्रपुरीषस्वेदाश्चविरेचयन्ति, आमपक्वाशयान्तरे च त्रिधा जायन्ते , तास्त्रिंशत् ।तासां तु वात्तपित्तकफ़शोणिततरसान् द्वे द्वे वहस्ता दश , द्वे अन्नवाहिन्याव्न्त्राश्रिते , तोयवहे द्वे ,मूत्रबस्तिमभिप्रपन्ने मूत्रवहे द्वे शुक्रवहे द्वे शुक्रप्रादुर्भावाय ,द्वे विसर्गाय ,ते एव रक्
Reference:1.1.9.7.0(पूर्व>सूत्र>योग्यासूत्रीयम्>सूत्र#7.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:योग्यासूत्रीयम्
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