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Sutra: | इच्छाभिघातभयशोकहतेऽन्तरग्नौ भावान् भवाय वितरेत् खलु शक्यरूपान्।अर्थेषु चाप्यपचितेषु पुनर्भवाय पौराणिकैः श्रु्तिशतैरनुमानयेत्तम्॥ |
Reference: | 1.2.57.16.0(पूर्व>निदान>ग्रन्थपच्यर्बुदगलगण्डनिदानम्>सूत्र#16.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | निदान |
Adhyaya: | ग्रन्थपच्यर्बुदगलगण्डनिदानम् |
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