Index Search for 'अभिघातात्क्षयात्कोपाच्छोकाद्ध्यानाच्छ्रमात्क्षुधः।' |
Sutra: | अभिघातात्क्षयात्कोपाच्छोकाद्ध्यानाच्छ्रमात्क्षुधः। ओजः संक्षीयते ह्येभ्यो धातुग्रहणानिःसृतम्। तेजः समीरितं तस्माद्विस्रंसयति देहिनः॥ |
Reference: | 1.1.15.27.0(पूर्व>सूत्र>दोषधातुमलक्षयवृद्धिविज्ञानीयम्>सूत्र#27.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | दोषधातुमलक्षयवृद्धिविज्ञानीयम् |
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