Index Search for 'अपच्यमानस्य' |
Sutra: | अपच्यमानस्य हि पाचनार्थं स्वेदो हितोऽम्लैरहिमं च भोज्यम्। निषेव्यमाणं पयसाऽऽर्द्रकं वा सम्पाचयेदिक्षुविकारयोगैः॥ |
Reference: | 1.1.24.19.0(पूर्व>सूत्र>व्याधिसमुद्देशीयम्>सूत्र#19.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | व्याधिसमुद्देशीयम् |
Search other sources: | search this word on other online resources
|