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Sutra: | धूप्येत वाक् क्षयकृते क्षयमाप्नुयाच्च वागेष वा(चा) पि हतवाक् परिवर्जनीयः।अन्तर्गलं स्वरमलक्ष्यपदं चिरेण मेदश्चयाद्वदति दिग्धगलौष्ठतालु॥ |
Reference: | 1.2.53.6.0(पूर्व>निदान>उदररोगनिदानम्>सूत्र#6.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | निदान |
Adhyaya: | उदररोगनिदानम् |
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