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Index Search for        'अनुशयी,'
Sutra: समासेन चतुश्चत्वारिंशत्क्षुद्ररोगाभवन्ति।तद्यथा- अजगल्लिका, यवप्रख्या, अन्धालजी, तथा, कच्छपिका, वल्मीकम्, इन्द्रवृद्धा, पनसिका, पाषाणगर्दभ:, कक्षा, विस्फोटक:, पिरोहिणी, चिप्पं, कुनख:,अनुशयी, विदारिका,शर्कराऽर्बुदं, पामा, विचर्चिका, दारिका, कदरम्, अलसेन्द्रलुप्तौ, दारुणका:, अरूंषिका, पलितं, मसूरिका, यौवनपिडका, वनीकण्टक:, जतुमणि:, मशक:, चर्मकील:, तिलकालक:, न्यच्छं, व्यङ्ग:, परिवर्तिका, पाटिका, निरुद्धप्रकाश:, संनिरुद्धगुद:, अहिपूतनं, वृषणकच्छु:, गुदभ्रंशश्चेति॥
Reference:1.1.13.3.0(पूर्व>सूत्र>जलौकावचारणीयम्>सूत्र#3.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:जलौकावचारणीयम्
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