Index Search for 'अनात्मवतामज्ञैश्चोपक्रान्ताः' |
Sutra: | सर्व एव व्रणाः क्षिप्रं संरोहन्त्यात्मवतां सुभिषिग्भिश्चोपक्रान्ताः;अनात्मवतामज्ञैश्चोपक्रान्ताः प्रदुष्यन्ति, प्रवृद्धत्वाद्दोषाणाम्। |
Reference: | 1.1.22.6.0(पूर्व>सूत्र>व्रणास्रावविज्ञानीयम्>सूत्र#6.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | व्रणास्रावविज्ञानीयम् |
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