Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'अत्रोच्यते-'
Sutra: भूयोऽत्र जिज्ञास्यं, किं वातादीनां ज्वरादीनां च नित्यः संश्लेषः? परिच्छेदो वा? इति; यदि नित्यः संश्लेषः स्यात्तर्हि नित्यातुराः सर्व एव प्राणिनः स्युः; अथाप्यन्यथा वातादीनां ज्वरादीनां च ’अन्यत्र वर्तमानानामन्यत्र लिङ्गं न भवति’ इति कृत्वा यदुच्यते वातादयो ज्वरादीनां मूलानीति तन्न।अत्रोच्यते- दोषान् प्रत्याख्याय ज्वरादयो न भवन्ति; अथ च न (नित्यः) सम्बन्धः; यथाहि विद्युद्वाताशनिवर्षाण्याकाशं प्रत्याख्याय न भवन्ति, सत्यप्याकाशे कदाचिन्न भवन्ति, अथ च निमित्ततस्तत एवोत्पत्तिरिति; तरङ्गबुद्बुदादयश्च
Reference:1.1.24.11.0(पूर्व>सूत्र>व्याधिसमुद्देशीयम्>सूत्र#11.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:व्याधिसमुद्देशीयम्
Search other sources: search this word on other online resources