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Index Search for        'अतोऽन्यान्यपि'
Sutra:अतोऽन्यान्यपि संयोगादहितानि वक्ष्यामः- नवविरूढधान्यैर्वसामधुपयगुडमाषैर्वा ग्राम्यानूपौदकपिशितादीन्यभ्यवहरेत्, न पयोमधुभ्यां रोहिणीशाकं जातुकशाकं वाऽश्नीयात्, बलाकां वारुणीकुल्माषाभ्यां, काकमाचीं पिप्पलीमरिचाभ्यां, नाडीभङ्गशककुक्कुटदधीनि च नैकध्यां; मधु चोष्णोदकानुपानां; पित्तेन चाममांसानि; सुराकृशरापायसांश्च नैकध्यं; सौवीरकेण सह तिलशष्कुलीं; मत्स्यैः सहेक्षुविकारान्; गुडेन काकमाचीं, मधुना मूलकं, गुडेन वाराहं, मधुना च सह विरुद्धं, क्षीरेण मूलकम्, आम्रजाम्बवश्वाविच्छूकरगोधाश्च; सर्वांश्च मत्स्यान्
Reference:1.1.20.13.0(पूर्व>सूत्र>हिताहितीयम्>सूत्र#13.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:हिताहितीयम्
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