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Sutra: ततोऽग्निं त्रिः परिणीयाग्निसाक्षिकं शिष्यं ब्रूयात्- कामक्रोधलोभमोहमानाहङ्कारेर्ष्यापारुष्यपैशुन्यानृतालस्यायशस्यानि हित्वा नीचनखरोम्णा शुचिना कषायवाससा सत्यव्रतब्रह्मचर्याभिवादनतत्परेणावश्यं भवितव्यं, मदनुमतस्थानगमनशयनासनभोजनाध्ययनपरेण भूत्वा मत्प्रियहितेषु वर्तितव्यम्अतोऽन्यथा ते वर्तमानस्याधर्मो भवति, अफला च विद्या, न च प्राकाश्यं प्राप्नोति॥
Reference:1.1.2.6.0(पूर्व>सूत्र>शिष्योपनयनीयम्>सूत्र#6.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:शिष्योपनयनीयम्
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