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Index Search for        'अतोऽन्यतमं'
Sutra:अतोऽन्यतमं बन्धं चिकीर्षुरग्रोपहरणीयोक्तोपसंभृतसंभारं विशेषतश्चात्रोपहरेत् सुरामण्डं क्षीरमुदक्ं धान्याम्लं कपालचूर्णं चेति। ततोऽङ्गनां पुरुषं वा ग्रथितकेशान्तं लघु भुक्तवन्तमाप्तयेः सुपरिगृहीतं च कृत्वा, बन्धमुपधार्य, छेद्यभेद्यलेख्यव्यधनैरुपपाद्य, कर्णशोणितमवेक्ष्य दुष्टमदुष्टं वेति; तत्र वातदुष्टे धान्याम्लोष्णोदकाभ्यां पित्तदुष्टे शीतोदकपयोभ्यां, श्लेष्मदुष्टे सुरामण्डोष्णोदकाभ्यां प्रक्षाल्य कर्णौ, पुनरवलिख्यानुन्नतमहीनमविषमं च कर्णसन्धिं सन्निवेश्य, स्थितरक्तं संदध्यात्। ततो मधुघृतेनाभ्यज्
Reference:1.1.16.15.0(पूर्व>सूत्र>कर्णव्यधबन्धविधिम्>सूत्र#15.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:कर्णव्यधबन्धविधिम्
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