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Tantra
 


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Index Search for        'अत'
Sutra:अत ऊर्ध्वमूर्ध्वजत्रुगतानि व्याख्यास्यामः- तत्र कण्ठनाडीमुभयतश्चतस्रो धमन्यो द्वे नीले द्वे च मन्ये व्यत्यासेन तत्र मूकता स्वरवैकृतमरसग्राहिता च; ग्रीवायामुभयतश्चतस्रःसिरा मातृकाः, तत्र सद्योमरणं; शिरोग्रीवयोः सन्धाने कृकाटिके, तत्र चलमूर्धता; कर्णपृष्ठतोऽधःसंश्रिते विधुरे, तत्र बाधिर्यं; घ्राणमार्गमुभयतः स्रोतोमार्गप्रतिबद्धे अभ्यन्तरतः फणे, तत्र गन्धाज्ञानं; भ्रूपुच्छान्तयोरधोऽक्ष्णोर्बाह्यतोऽपाङ्गौ, तत्रान्ध्यं दृष्ट्युपघातो वा; भ्रुवोरुपरि निम्नयोरावर्तौ, तत्राप्यान्ध्यं दृष्ट्युपघातो वा; भ्
Reference:1.1.6.28.0(पूर्व>सूत्र>ऋतुचर्यम्>सूत्र#28.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:ऋतुचर्यम्
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