Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'अग्नीषोमीयत्वाज्जगतः।'
Sutra: नेत्याहुरन्ये, वीर्यं प्रधानमिति। कस्मात्? तद्वशेनौषधकर्मनिष्पत्तेः। इहौषधकर्माण्यूर्ध्वाधोभागोभयभागसंशोधनसंशमनसांग्राहिकाग्निदीपनपीडनलेखनबृंहणरसायनवाजीकरणश्वयथुकरविलयनदहनदारणमादनप्राणघ्नविषप्रशमनादीनि वीर्यप्राधान्याद्भवन्ति। तच्च वीर्यं द्विविधमुष्णं शीतं च,अग्नीषोमीयत्वाज्जगतः। केचिदष्टविधमाहुः- शीतमुष्णं स्निग्धं रूक्षं विशदं पिच्छिलं मृदु तीक्ष्णं चेति। एतानि वीर्याणि स्वबलगुणोत्कर्षाद्रसमभिभूयात्कर्म कुर्वन्ति। यथा तावन्महत्पञ्चमूलं कषायं तिक्तानुरसं वात शमयति, उष्णवीर्यत्वात्; यथा कुलत्थ
Reference:1.1.40.5.0(पूर्व>सूत्र>द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम्>सूत्र#5.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम्
Search other sources: search this word on other online resources