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Index Search for        'अकचत्वारत्रिंशज्ज्त्रुण'
Sutra: तत्र वातवाहिन्यः सिरा एकस्मिन् सक्थिनि पञ्चविंशतिः,एतेनेतरसक्थिबाहू च व्याख्यातौ। विशेषतस्तु कोष्ठे चतुस्त्रिंशत्, तासां गुदमेढ्राश्रिताः श्रोण्यामष्टौ, द्वे द्वे पार्श्वयोः, षट् पृष्ठे, तावत्य एवोदरे दश वक्षसि।अकचत्वारत्रिंशज्ज्त्रुण ऊर्ध्वं, तासां चतुर्दश ग्रीवायां, कर्णयोश्चतस्रः, नव जह्वायां, षट् नासिकायां, अष्टौ नेत्रयोः, एवमेतत् पञ्चसप्ततिशतं वातवाहिनीनां सिराणां व्याख्यातं भवति। एष एव विभागः शेषाणामपि। विशेषतस्तु पित्तवाहिन्यो नेत्रयोर्दश, कर्णयोर्द्वे, एवं रक्तवहाः कफवहाश्च। एवमेतानि सप
Reference:1.1.7.7.0(पूर्व>सूत्र>यन्त्रविधिम्>सूत्र#7.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:यन्त्रविधिम्
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