Index Search for 'ज्ञेयस्तु' |
Shloka: | आसीनश्च शयानश्च यः पश्यति नरः पितॄन् । उन्माद्यति स तु क्षिप्रं सज्ञेयस्तु पितृग्रहः ॥ |
Reference: | 3.37.219.0.47(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#47) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|