Index Search for 'ज्ञेयः' |
Shloka: | अवमन्यति यः सिद्धान्क्रुद्धाश्चापि शपन्ति यम् । उन्माद्यति स तु क्षिप्रंज्ञेयः सिद्धग्रहस्तु सः ॥ |
Reference: | 3.37.219.0.48(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#48) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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