Index Search for 'ज्ञात्वा' |
Shloka: | चिन्तयामास च मनुस्तं मत्स्यं पृथिवीपते । स च तच्चिन्तितंज्ञात्वा मत्स्यः परपुरंजय । शृङ्गी तत्राजगामाशु तदा भरतसत्तम ॥ |
Reference: | 3.37.185.0.35(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>पञ्चाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#35) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | पञ्चाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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