Index Search for 'ज्ञात्वा' |
Shloka: | ज्ञात्वा बलस्थं त्रिदशाधिपं तु ननाद वृत्रो महतो निनादान् । तस्य प्रणादेन धरा दिशश्च खं द्यौर्नगाश्चापि चचाल सर्वम् ॥ |
Reference: | 3.33.99.0.12(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>एकोनशततमोऽध्यायः (99)>श्लोक#12) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | एकोनशततमोऽध्यायः (99) |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|