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Shloka: | भगवान्मे प्रसन्नश्चेदीप्सितोऽयं वरो मम । अस्त्राणीच्छाम्यहंज्ञातुं यानि देवेषु कानिचित् । ददानीत्येव भगवानब्रवीत्त्र्यम्बकश्च माम् ॥ |
Reference: | 3.35.163.0.47(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>यक्षयुद्धपर्व>त्रिषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#47) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | यक्षयुद्धपर्व |
Adhyaya: | त्रिषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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