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Shloka: | ययातिरुवाच -ज्ञातिः सुहृत्स्वजनो यो यथेह क्षीणे वित्ते त्यज्यते मानवैर्हि । तथा तत्र क्षीणपुण्यं मनुष्यं त्यजन्ति सद्यः सेश्वरा देवसंघाः ॥ |
Reference: | 1.7.85.3.2(आदिपर्व>संभवपर्व>पञ्चाशीतितमोऽध्यायः (85)>उत्तरयायातम्>श्लोक#2) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | पञ्चाशीतितमोऽध्यायः (85) |
Akhyana: | उत्तरयायातम् |
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