Index Search for 'खस्थान्' |
Shloka: | वैशंपायन उवाच - ततोऽपश्यत्त्रिदशान्राजपुत्री सर्वानेव स्वेषु धिष्ण्येषुखस्थान् । प्रभासन्तं भानुमन्तं महान्तं यथादित्यं रोचमानं तथैव ॥ |
Reference: | 3.43.290.0.20(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>कुन्दलाहरणपर्व>नवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#20) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | कुन्दलाहरणपर्व |
Adhyaya: | नवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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