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Shloka: | सएष शूरो नित्यममर्षणश्च धीमान्प्राज्ञः सहदेवः पतिर्मे । त्यजेत्प्राणान्प्रविशेद्धव्यवाहं न त्वेवैष व्याहरेद्धर्मबाह्यम् । सदा मनस्वी क्षत्रधर्मे निविष्टः कुन्त्याः प्राणैरिष्टतमो नृवीरः ॥ |
Reference: | 3.42.254.0.18(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>चतुःपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#18) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | चतुःपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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