Index Search for 'एष' |
Shloka: | तत आदाय विप्रर्षे प्रतिगृह्य धनं बहु । भृत्यान्सुतान्संविभज्य ततो व्रज यथेप्सितम् ।एष वै परमो धर्मो धर्मविद्भिरुदाहृतः ॥ |
Reference: | 3.37.183.0.5(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>त्र्यशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#5) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | त्र्यशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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