Index Search for 'एवात्र' |
Shloka: | त्वं पुनः स्थितएवात्र रथे भ्रान्ते कुरूद्वह । अतिशक्रमिदं सत्त्वं तवेति प्रतिभाति मे ॥ |
Reference: | 3.35.164.0.39(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>यक्षयुद्धपर्व>चतुःषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#39) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | यक्षयुद्धपर्व |
Adhyaya: | चतुःषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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