Index Search for 'एवमुक्त्वा' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच -एवमुक्त्वा स धर्मात्मा गुरुवर्ती गुरुप्रियः । उच्छ्रित्य बाहू दुःखार्तः सस्वरं प्ररुरोद ह ॥ |
Reference: | 3.42.281.0.94(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#94) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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