Index Search for 'एवमुक्त्वा' |
Shloka: | पुरंदरस्तु तामाह मा भैर्नास्ति भयं तव ।एवमुक्त्वा ततोऽपश्यत्केशिनं स्थितमग्रतः ॥ |
Reference: | 3.37.213.0.8(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>त्रयोदशाधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#8) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | त्रयोदशाधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|