Index Search for 'एवमुक्त्वा' |
Shloka: | अर्जुन उवाच -एवमुक्त्वा तु मां शक्रस्तत्रैवान्तरधीयत । अथापश्यं हरियुजं रथमैन्द्रमुपस्थितम् । दिव्यं मायामयं पुण्यं यत्तं मातलिना नृप ॥ |
Reference: | 3.35.164.0.31(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>यक्षयुद्धपर्व>चतुःषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#31) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | यक्षयुद्धपर्व |
Adhyaya: | चतुःषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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