Index Search for 'एवमुक्ते' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच -एवमुक्ते वामदेवेन राजन्समुत्तस्थू राक्षसा घोररूपाः । तैः शूलहस्तैर्वध्यमानः स राजा प्रोवाचेदं वाक्यमुच्चैस्तदानीम् ॥ |
Reference: | 3.37.190.0.67(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>नवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#67) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | नवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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