Index Search for 'एवमुक्तस्तु' |
Shloka: | वैशंपायन उवाच -एवमुक्तस्तु विप्रेन्द्रो धर्मराज्ञा महात्मना । कथयामास माहात्म्यं सगरस्य महात्मनः ॥ |
Reference: | 3.33.104.0.5(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>चतुरधिकशततमोऽध्यायः (104)>श्लोक#5) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | चतुरधिकशततमोऽध्यायः (104) |
Akhyana: | |
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