Index Search for 'एवंवृत्तो' |
Shloka: | दानं तपः सत्यमथापि धर्मो ह्रीः श्रीः क्षमा सौम्य तथा तितिक्षा । राजन्नेतान्यप्रतिमस्य राज्ञः शिबेः स्थितान्यनृशंसस्य बुद्ध्या ।एवंवृत्तो ह्रीनिषेधश्च यस्मात्तस्माच्छिबिरत्यगाद्वै रथेन ॥ |
Reference: | 1.7.88.3.19(आदिपर्व>संभवपर्व>अष्टाशीतितमोऽध्यायः (88)>उत्तरयायातम्>श्लोक#19) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | अष्टाशीतितमोऽध्यायः (88) |
Akhyana: | उत्तरयायातम् |
Search other sources: | search this word on other online resources
|