Index Search for 'एवंविधं' |
Shloka: | सरः सुपर्णेन हृतोरगं यथा राष्ट्रं यथाराजकमात्तलक्ष्मि ।एवंविधं मे प्रतिभाति काम्यकं शौण्डैर्यथा पीतरसश्च कुम्भः ॥ |
Reference: | 3.42.253.0.5(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>त्रिपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#5) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | त्रिपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|