Index Search for 'एवं' |
Shloka: | अपराण्यपि चत्वारि शतानि द्विजसत्तम । नीयमानानि संतारे हृतान्यासन्वितस्तया ।एवं न शक्यमप्राप्यं प्राप्तुं गालव कर्हिचित् ॥ |
Reference: | 5.54.117.11.8(उद्योगपर्व>भगवद्यानपर्व>सप्तदशाधिकशततमोऽध्यायः (117)>गालवचरितम्>श्लोक#8) |
Parva: | उद्योगपर्व |
Upaparva: | भगवद्यानपर्व |
Adhyaya: | सप्तदशाधिकशततमोऽध्यायः (117) |
Akhyana: | गालवचरितम् |
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