Index Search for 'एवं' |
Shloka: | वैशंपायन उवाच -एवं हृतायां कृष्णायां प्राप्य क्लेशमनुत्तमम् । विहाय काम्यकं राजा सह भ्रातृभिरच्युतः ॥ |
Reference: | 3.44.295.0.2(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>आरणेयपर्व >पञ्चनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#2) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | आरणेयपर्व |
Adhyaya: | पञ्चनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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