Index Search for 'एवं' |
Shloka: | जनमेजय उवाच -एवं वने वर्तमाना नराग्र्याः शीतोष्णवातातपकर्शिताङ्गाः । सरस्तदासाद्य वनं च पुण्यं ततः परं किमकुर्वन्त पार्थाः ॥ |
Reference: | 3.39.225.0.1(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>घोषयात्रापर्व>पञ्चविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#1) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | घोषयात्रापर्व |
Adhyaya: | पञ्चविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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