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Shloka: | एवं स्कन्दस्य महिषीं देवसेनां विदुर्बुधाः । षष्ठीं यां ब्राह्मणाः प्राहुर्लक्ष्मीमाशां सुखप्रदाम् । सिनीवालीं कुहूं चैव सद्वृत्तिमपराजिताम् ॥ |
Reference: | 3.37.218.0.47(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>अष्टादशाधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#47) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | अष्टादशाधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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