Index Search for 'एव' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच - ततोऽग्निं तत्र संज्वाल्य द्विजास्ते सर्वएव हि । उपासां चक्रिरे पार्थ द्युमत्सेनं महीपतिम् ॥ |
Reference: | 3.42.282.0.25(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>द्वयशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#25) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | द्वयशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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