Index Search for 'एव' |
Shloka: | सावित्र्युवाच - न दूरमेतन्मम भर्तृसंनिधौ मनो हि मे दूरतरं प्रधावति । तथा व्रजन्नेव गिरं समुद्यतां मयोच्यमानां शृणु भूयएव च ॥ |
Reference: | 3.42.281.0.39(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#39) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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