Index Search for 'एव' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच - भूयएव तु माहात्म्यं ब्राह्मणानां निबोध मे । वैन्यो नामेह राजर्षिरश्वमेधाय दीक्षितः । तमत्रिर्गन्तुमारेभे वित्तार्थमिति नः श्रुतम् ॥ |
Reference: | 3.37.183.0.1(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>त्र्यशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#1) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | त्र्यशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|