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Shloka: | एतस्मिन् अन्तरे स श्रमणः तु अरमाण उपसृत्य ते कुण्डले गृहीत्वा प्र अद्रवत् । तम् उत्तङ्कः अभिसृत्य जग्राह । स तत् रूपम् विहाय तक्षकरूपम् कृत्वा सहसा धरण्याम् विवृतम् महाबिलम् विवेश ॥ |
Reference: | 1.3.3.0.137(आदिपर्व>पौष्यपर्व>तृतीयोऽध्यायः (03)>श्लोक#137) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | पौष्यपर्व |
Adhyaya: | तृतीयोऽध्यायः (03) |
Akhyana: | |
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