Index Search for 'एतदिच्छाम्यहं' |
Shloka: | युधिष्ठिर उवाच - किमर्थं सहसा विन्ध्यः प्रवृद्धः क्रोधमूर्छितः ।एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं विस्तरेण महामुने ॥ |
Reference: | 3.33.102.0.1(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>द्वयधिकशततमोऽध्यायः (102)>श्लोक#1) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | द्वयधिकशततमोऽध्यायः (102) |
Akhyana: | |
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